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औषधीय गुणों से भरपूर है ये फूल, सालों से बनते आ रहे हैं स्वादिष्ट पकवान, जानें फायदे

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छतरपुर: छतरपुर जिले में महुआ का पेड़ हर जगह देखने को मिलता है, और यह ग्रामीणों की संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है. महुआ का उपयोग स्थानीय लोग सालों से कर रहे हैं, और इसकी मिठास और पौष्टिकता ने इसे ग्रामीणों के जीवन में एक विशेष स्थान दिला दिया है. महुआ की फसल का समय गर्मियों में होता है, जब लोग सुबह-सुबह फूल बीनने निकलते हैं। बुजुर्ग मयकू अहिरवार कहते हैं, “महुआ एक ऐसा पेड़ है, जो अपने पूरे जीवन काल में हमारे लिए उपयोगी है.”

महुआ की खासियत
महुआ के फूल से बनने वाले पकवान न केवल स्वादिष्ट होते हैं, बल्कि पौष्टिकता से भरपूर भी हैं. ग्रामीण लोग इसे सुखाकर सुरक्षित रखते हैं और फिर विभिन्न तरीकों से इसका उपयोग करते हैं। मयकू के अनुसार, “कोई इसकी डुभरी बना रहा है, तो कोई मिठाई बना रहा है.”

महुआ से बनती है डुभरी
महुआ की डुभरी बनाने की प्रक्रिया सरल और स्वादिष्ट है। इसे मिट्टी की हांडी या स्टील के पतेली में चढ़ाया जाता है. फिर महुआ को अच्छी तरह से मींजकर इसमें गेहूं का आटा या चना बेसन मिलाया जाता है. जब यह गाढ़ा हो जाता है, तो डुभरी तैयार हो जाती है. मयकू बताते हैं कि पुराने बुजुर्ग लोग इसे बारह महीने तक खाते थे, जिससे यह एक पारंपरिक व्यंजन बन गया है.

ठंड में मुरका का आनंद
सर्दी के मौसम में, महुआ का मुरका एक खास पसंद है। इसे बनाने के लिए महुआ और तिल को एक साथ कूटकर एक पौष्टिक मिश्रण तैयार किया जाता है. ग्रामीण इसे अपने तरीके से खाते हैं, जो ठंड में गर्माहट और ऊर्जा देता है. इसके अलावा, बरसात में महुआ का हलुआ भी बनाया जाता है, जो बच्चों और बड़ों दोनों के लिए खास होता है.

महुआ की पौष्टिकता
मयकू का कहना है, “महुआ से बने पकवान किशमिश को भी टक्कर देते हैं. महुआ से लड्डू और लपसी बनती है, जो बेहद पौष्टिक होते हैं.” महुआ में प्रोटीन, फाइबर, और कार्बोहाइड्रेट्स जैसे पोषक तत्व होते हैं, साथ ही इसमें सैपोनिन और टैनिन जैसे प्रभावशाली तत्व भी होते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते हैं. इसके अलावा, किशमिश और खजूर खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि महुआ फ्री में उपलब्ध है.

ग्रामीणों की निर्भरता
महुआ को ‘इंडियन बटर ट्री’ भी कहा जाता है, और यह ग्रामीण लोगों के लिए जीवनदायिनी स्रोत है. महुआ के फूल से बने विभिन्न प्रकार के पकवानों के माध्यम से, ग्रामीण लोग अपनी पारंपरिक खान-पान की संस्कृति को जीवित रखते हैं. यह एक ऐसा पेड़ है, जिससे वे साल भर निर्भर रहते हैं.

Tags: Chhatarpur news, Health, Local18, Madhyapradesh news



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