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कनॉट प्लेस का नाम कैसे पड़ा, क्या है इसके बनने की कहानी? माना जाता है ‘दिल्ली का दिल’!

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दिल्ली को भारत का दिल कहते हैं, पर दिल्ली का भी एक दिल है. ये वो जगह है जहां आपको अमीर-गरीब और बच्चे-बूढ़े दिख जाएंगे. यहां आपको कहीं कोई अंडरग्राउंड मार्केट में शॉपिंग करता दिख जाएगा तो कोई पार्क में बैठे नजर आ जाएगा. कोई इस इलाके में अपने दोस्तों के साथ सिर्फ टहलने-घूमने आ जाएगा तो कोई यहां के फेमस रेस्टोरेंट्स का लुत्फ उठाने. हम बात कर रहे हैं दिल्ली के कनॉट प्लेस की. अपने खूबसूरत आर्किटेक्चर के लिए फेमस इस इलाके का इतिहास काफी पुराना और रोचक है. आज हम आपको कनॉट प्लेस के इतिहास के बारे में बताएंगे, और साथ ही ये भी बताएंगे कि आखिर इस जगह का नाम कनॉट प्लेस (Connaught Place Delhi history) कैसे पड़ा?

1929 से इसके बनने की शुरुआत हुई थी. (फोटो: Canva)

मीडियम वेबसाइट के अनुसार भारत की जानी-मानी इतिहासकार स्वपना लिडल की एक किताब है, ‘कनॉट प्लेस एंड द मेकिंग ऑफ न्यू डेल्ही’. इस किताब में उन्होंने विस्तार से मॉडर्न दिल्ली और कनॉट प्लेस (Connaught Place name history) के बनने की कहानी का जिक्र किया है. स्वपना के मुताबिक कॉनट प्लेस का नाम इंग्लैंड के प्रिंस आर्थर (Prince Arthur of Connaught) के नाम पर रखा गया, जिन्हें ड्यूक ऑफ कनॉट भी कहा जाता था. प्रिंस आर्थर, रानी विक्टोरिया के तीसरे बेटे थे. रॉयल कलेक्शन ट्रस्ट के अनुसार प्रिंस आर्थर, 1921 में कोलकाता भी आए थे.

Connaught Place Delhi history

इसका डिजाइन इंग्लैंड के बाथ में मौजूद रॉयल क्रिसेंट से मिलती है. (फोटो: Canva)

4 साल में बना कनॉट प्लेस
कनॉट प्लेस को 1929 से 1933 के बीच बनाया गया. इसे बनाने में 4 साल का वक्त लगा. कनॉट प्लेस को आर्किटेक्ट रॉबर्ट टॉर रसेल डिजाइन कर रहे थे. डिजाइन को इंग्लैंड के बाथ में मौजूद रॉयल क्रिसेंट के डिजाइन जैसा बनाया जा रहा था. इस इलाके को दिल्ली में रहने वाले अंग्रेजों के लिए एक पॉश इलाके के तौर पर तैयार किया जा रहा था जिसका डिजाइन आर्किटेक्ट एडविन लुटियन तैयार कर रहे थे. आज उन्हीं इलाकों को लुटियन्स दिल्ली के नाम से भी जाना जाता है.

बदल गया कनॉट प्लेस का रंग-रूप
आज कनॉट प्लेस दिल्ली का बहुत बड़ा कमर्शियल हब बन चुका है. यहां बड़े-बड़े ब्रांड्स की दुकानें, बड़े रेस्टोरेंट्स आदि मौजूद हैं. इलाके को अलग-अलग सर्किल में डिजाइन किया गया है. इनर सर्किल के बीच में सेंट्रल पार्क है, जिसके नीचे पालिका बाजार है. इसे भारत की पहली वातानुकूलित भूमिगत मार्केट माना जाता है. आज भी यहां कई ऐसी दुकानें मौजूद हैं, जो आजादी से पहले की हैं और इन दुकानों का संचालन चौथी-पांचवीं पीढ़ी के लोग कर रहे हैं.

Tags: Ajab Gajab news, Delhi, Trending news, Weird news



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