हजारीबाग. भारत एक कृषि प्रधान देश है. देश के दो तिहाई से अधिक लोग कृषि पर ही निर्भर करते हैं. भारत भर में प्रमुख रूप से गेहूं और धान की खेती की जाती है. वहीं अगर बात झारखंड की जाए तो यहां के किसान वृहद पैमाने पर धान की खेती करते हैं. धान की खेती में दूसरे फसलों की तुलना से अधिक पानी की खपत होती है. ऐसे में झारखंड के कई खेतों में कम पैदावार देखने को मिलती है. इसके पीछे का प्रमुख कारण यह है कि झारखंड की भूमि समतल और एक समान नहीं है. यहां तीन वैरायटी के खेत होते हैं. किसी में अधिक पानी होता है वहीं कई खेतों में केवल मूसलाधार बारिश में ही पानी देखने को मिलता है.
हजारीबाग के मासीपीढ़ी में स्थित सेंट्रल रेनफेड अपलैंड राइस रिसर्च सेंटर इन्हीं कम पानी वाले खेतों पर काम करती है. यहां प्रमुख रूप से नई-नई प्रजाति के धान के बीज तैयार किए जाते हैं, जिससे किसान आसानी से कम पानी वाले खेतों में भी अच्छी फसल की उपज ले सके. केंद्र ने अब तक देश ने 20 से अधिक नई प्रजाति दिए है. हाल के समय में केंद्र ने तीन नई किस्म के धान के बीज इजाद किए हैं. जिसमें सीआर धान 320, सीआर धान 804, और सीआर धान 214 शामिल है. इस धान का सफलतापूर्वक ट्रायल किया जा चुका है. साथ ही इसे आसपास के किसानों के खेत में लगाने के लिए दिया गया था.
सेंट्रल रेनफेड अपलैंड राइस रिसर्च सेंटर के मृदा वैज्ञानिक डॉ विभाष चंद्र वर्मा ने बताया कि लगातार धान की फसलों पर काम कर रहा है. अब तक कई प्रजाति के धान के बीज यहां तैयार किए गए हैं. इनके पीछे का मुख्य मकसद है कि किस प्रकार अपलैंड खेतों में बेहतर खेती की जाएं. साथ ही केंद्र ऐसे बीज तैयार करता है जिससे किसान एक बार बो कर फिर उसके फसल को बीज के रूप में इस्तेमाल कर सके. हाल के समय में केंद्र में सीआर धान 320, सीआर धान 804, और सीआर धान 214 प्रजाति के बीच तैयार किए हैं. इसे स्थानीय किसानों ने लगाया भी जिससे अच्छी पैदावार आई है.
इचाक प्रखंड के लेदाई गांव की रहने वाली कांति देवी बताती है कि उन्होंने केंद्र से ले जाकर अपने खेतों में इसकी फसल लगाई थी. जिससे इस वर्ष बंपर फसल हुआ है. जहां पहले खेत में 100 बोझा धान होता था वहीं इसबार लगभग 150 बोझा धान का उत्पादन हुआ है. वह आगे के फसल के लिए इसी फसल को बीज के रूप में इस्तेमाल करेंगी.
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FIRST PUBLISHED : December 7, 2024, 07:59 IST