भरतपुर:- राष्ट्रीय अनहद महायोग पीठाधीश्वर रूद्रनाथ महाकाल विशाल ने बुधवार को सनातन संस्कृति अखंड भारत सेतुबंध अभियान के तहत अमृत कलश यात्रा की शुरुआत की है. इस यात्रा का आरंभ भारत-पाक नियंत्रण रेखा पर स्थित नो मेन्स लैंड में कृष्णगंगा नदी के पवित्र जल से अमृत कलश भरकर किया गया है. इस दौरान भारतीय सेना और सीमा सुरक्षा बल ने सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए थे.
कृष्णगंगा नदी, जिसे संगम का दर्जा प्राप्त है, मधुमती और सरस्वती की धाराओं के मिलन से बनी है. शारदा पीठ से निकली यह यात्रा 3,000 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सहित सात राज्यों से गुजरेगी. यात्रा के दौरान प्रसिद्ध मंदिरों में धार्मिक आयोजन होंगे. इन कार्यक्रमों में मुख्यमंत्री, मंत्री और जनप्रतिनिधि भाग लेंगे.
बांगड़ फील्ड में एक विशाल धर्मसभा का आयोजन
यात्रा जम्मू-कश्मीर के मार्तंड सूर्य मंदिर, खीर भवानी मंदिर, वैष्णो देवी मंदिर और कुरुक्षेत्र से होते हुए राजस्थान पहुंचेगी. राजस्थान में गोविंद देव जी मंदिर जयपुर, मदन मोहन जी मंदिर करौली और केला देवी के बड़े मंदिर करौली में विशेष आयोजन होंगे. बयाना कस्बे की ऐतिहासिक बांगड़ फील्ड में एक विशाल धर्मसभा का आयोजन होगा. यहां से यात्रा वृंदावन के बिहारी जी मंदिर पहुंचेगी और अंतत प्रयागराज में महाकुंभ आयोजन के स्थान पर समापन होगा.
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देवताओं ने यहां छुपाया था अमृत
राष्ट्रीय अनहद महायोग पीठाधीश्वर रूद्रनाथ महाकाल विशाल ने लोकल 18 को बताया कि पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के बाद अमृत कलश को दैत्यों से बचाकर सरस्वती क्षेत्र में सुरक्षित रखा गया था. यह स्थान आज शारदा पीठ के नाम से प्रसिद्ध है. अमृत कलश यात्रा का यह ऐतिहासिक प्रयास पहली बार नो मेन्स लैंड पर हुआ, जहां कृष्णगंगा नदी का पवित्र जल भरा गया.
नो मेन्स लैंड वह क्षेत्र है, जो दो देशों की सीमाओं के बीच स्थित होता है, किसी के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता. अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत इस आयोजन के लिए पाकिस्तान रेंजर्स को सूचित किया गया था. लेकिन अनुमति अस्वीकार कर दी गई. भारतीय अधिकारियों ने इस कार्यक्रम को हर हाल में पूरा करने का निर्णय लिया. दोनों ओर के स्नाइपर्स की उपस्थिति में दो दिन की गहमागहमी के बाद अमृत कलश भरा गया. यह यात्रा सनातन संस्कृति और अखंड भारत के प्रतीक के रूप में धार्मिक और सांस्कृतिक एकता का संदेश दे रही है.
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FIRST PUBLISHED : December 12, 2024, 16:47 IST