झारखंड: झारखंड राज्य में प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर कई जगहें हैं, और इनमें से एक विशेष स्थान है पलामू जिले के पाटन प्रखंड में स्थित काला पहाड़. यह पहाड़ 52 बीघा में फैला हुआ है और स्थानीय लोगों के लिए आस्था और विश्वास का केंद्र है. इसके अलावा, यह जगह पिकनिक मनाने और प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने के लिए भी दूर-दूर से लोगों को आकर्षित करती है.
काला पहाड़ का इतिहास और आस्था
इस पहाड़ का नाम ही इस गांव के नाम का कारण है. स्थानीय लोगों के अनुसार, काला पहाड़ हजारों वर्षों से यहां मौजूद है, और कभी यह स्थान राजा-रानी के काले महल के रूप में जाना जाता था. बाद में यह पहाड़ में बदल गया. पहाड़ की ऊंचाई पर कई रहस्यमयी गुफाएं हैं, जिनसे अजीब आवाजें आती हैं, लेकिन कोई भी गुफा के अंदर जाने का साहस नहीं करता.
धार्मिक महत्व
काला पहाड़ पर भगवान भोलेनाथ के प्राकृतिक रूप में दर्शन होते हैं, और ऊंचाई पर सती माता का मंदिर भी है. मंदिर के महंत कठिन दुबे ने ‘लोकल 18’ से बातचीत में बताया कि 1991 में सती माता ने उन्हें सपने में दर्शन दिए थे, जिसके बाद उन्होंने वहां पूजा शुरू की. उनके अनुसार, सती माता की पूजा करने से क्षेत्र में कभी अकाल की स्थिति नहीं बनती. यहां सती माता, काल भैरव, नाग माता, नवग्रह, और महाकाल बाबा की मूर्तियां भी स्थापित हैं, जो श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र हैं. हर साल मकर संक्रांति के अवसर पर यहां मेला लगता है, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं.
पर्यटन और पिकनिक के लिए आकर्षण
काला पहाड़ न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह पर्यटन के लिहाज से भी एक बेहतरीन जगह है. पहाड़ की ऊंचाई से पूरे गांव का भव्य और आकर्षक नजारा देखने को मिलता है, जो पर्यटकों को बहुत पसंद आता है. पहाड़ पर बैठकर लोग प्रकृति के अद्भुत दृश्य का आनंद लेते हैं और वहां की शांति में समय बिताते हैं.
क्यों कहा जाता है ‘काला पहाड़’?
इस पहाड़ को ‘काला पहाड़’ कहा जाता है क्योंकि यहां के सभी पत्थर काले हैं. इसका कारण यह है कि इन पत्थरों में आयरन की अधिक मात्रा पाई जाती है, जिससे ये पत्थर काले रंग के होते हैं.
कैसे पहुंचे?
इस जगह पर आने के लिए पाटन के कीसुनपुर के रास्ते से पहुंचा जा सकता है. पहाड़ की ऊंचाई पर चढ़ने के बाद जो अनुभव मिलता है, वह बेहद खास होता है. यहां की प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक महत्व के कारण काला पहाड़ पर्यटकों और श्रद्धालुओं दोनों के लिए एक विशेष स्थान है.
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FIRST PUBLISHED : September 16, 2024, 16:38 IST