तुष्टीकरण में डूबी हेमंत सरकार ने जनजातीय समाज के साथ अन्याय किया है-अमित शाह भोगनाडीह (साहिबगंज) के हमारे जनजातीय बहन-भाई बदलाव के लिए तैयार हैं-अमित शाह
रांची. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने झारखण्ड में बीजेपी की चुनावी अभियान की शुरुआत कर दी है. परिवर्तन यात्रा के नाम से शुरू हुआ यह चुनावी अभियान सभी 81 विधान सभा क्षेत्रों को कवर करेगा. बीजेपी के नेता और कार्यकर्त्ता करीब 5400 किलोमीटर की परिवर्तन यात्रा निकालेंगे. शहीद सिदो-कान्हो की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर अमित शाह ने साहिबगंज जिले के भोगनाडीह से चुनावी बिगुल फूंक दिया है. भोगनाडीह पहुंच कर अमित शाह के सिदो-कान्हो को श्रद्धांजलि देते ही यह सवाल पैदा हो गया है कि अमित शाह ने परिवर्तन यात्रा के लिए आखिर भोगनाडीह को ही क्यों चुना?
दरअसल, संथाल परगना का भोगनाडीह हीं वह क्षेत्र है जहां से अंग्रेजों के खिलाफ आदिवासियों ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से पहले हीं विद्रोह (हूल) कर दिया था. अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की कहानी शुरू हो गई. हालांकि अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता की पहली लड़ाई का वर्ष 1857 माना जाता रहा है, लेकिन 30 जून 1855 को झारखण्ड के संथाल परगना क्षेत्र के संथाल आदिवासियों ने ‘संथाल विद्रोह (हूल)’ का बिगुल फूंक कर अंग्रेजों को भारी नुकसान पहुंचाया.
संथाल परगना के लोग स्वभाव से सरल और प्रकृति के प्रेमी होते हैं. जिसका मुगल और अंग्रेजों जैसे विदेशी आक्रमणकारियों ने खूब फायदा उठाया. इतिहासकारों का कहना है कि बिहार-झारखण्ड,बंगाल,ओड़िशा क्षत्रों में फैले आदिवासियों का न केवल शारीरिक शोषण होने लगा,बल्कि उनसे मालगुजारी भी वसूली जाने लगी. अंग्रेज,आदिवासियों के सामाजिक ताने-बाने और धार्मिक परंपराओं-मान्यताओं पर भी चोट पहुंचाने लगे.
धीरे-धीरे लोगों में असंतोष पनपने लगा
लोगों में बढ़ते असंतोष ने विद्रोह का रूप ले लिया. भोगनाडीह निवासी चुन्नी माझी के चार बेटे सिदो, कान्हो, चांद, भैरव विद्रोह के नायक बन कर उभरे. लोगों के बीच एक कहावत मशहूर है कि सिदो के सपने में संथाल देवता बोंगा, जिनके हाथों में बीस अंगुलियां थीं, आए और उन्होंने जमींदारों, पुलिस, ब्रिटिश राज के अमले और सूदखोरों के खिलाफ लड़ाई के लिए प्रेरित किया. संथाल आदिवासी बोंगा की पूजा-अर्चना करते थे. बोंगा के संदेश को डुगडुगी पिटवा कर गांव-गांव तक पहुंचाया गया और लोगों ने प्रतीक स्वरूप साल वृक्ष की टहनी लेकर गांव-गांव जाकर लोगों बीच संदेश पहुंचाए.
संथालों ने दारोगा को मार डाला
परंपरागत शस्त्रों से लैस होकर 30 जून 1855 को 400 गांवों के 50 हजार लोग भोगनाडीह पहुंच गए और आंदोलन शुरू हो गया. सिदो, कान्हो, चांद और भैरव ने सभा में मालगुजारी नहीं देने की खुलेआम घोषणा कर दी. संथाल विद्रोह का नारा था करो या मरो ‘अंग्रेजों हमारी माटी छोड़ो’. अंग्रेजों ने चारों भाइयों की गिरफ्तारी का आदेश दिया, लेकिन जिस दारोगा महेश लाल और प्रताप नारायण को वहां भेजा गया था, उसकी संथालों ने हत्या कर दी. अंग्रेज अधिकारियों में भय का माहौल बन गया.
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि आज यहां से झारखंड के 2024 के चुनाव के लिए भाजपा की परिवर्तन यात्रा का शुभारंभ हो रहा है
हजारों वनवासियों की जान गई
अंग्रेजों का नेतृत्व कर रहे जनरल लॉयर्ड ने संथालों के भय से बचने के लिए पाकुड़ में मार्टिलो टावर का निर्माण कराया था जो आज भी पाकुड़ जिले में मौजूद है. संथालियों के विद्रोह को देखते हुए भागलपुर की सुरक्षा कड़ी कर दी गई. अंग्रेजों ने आंदोलन को दबाने के लिए सेना भेज दी और विद्रोहियों को गोलियों से भून डाला गया. अंग्रेजों और विद्रोहियों की लड़ाई में चांद और भैरव शहीद हो गए. अंग्रेजों के आधुनिक हथियारों के सामने तीर-धनुष के साथ विद्रोहियों ने जमकर लड़ाई लड़ी. हजारों वनवासियों की जान चली गई.
अग्रेज हुकूमत की जड़ों को हिला दिया
कुछ विश्वस्त साथियों को लालच देकर सिदो और कान्हो दोनों भाइयों को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया. अगस्त 1855 में पंचकठिया में एक बरगद पेड़ पर अंग्रेजों ने सिदो को फांसी दे दी और कान्हो को भोगनाडीह गांव में पेड़ पर लटकाकर फांसी दे दी. सिदो, कान्हो, चांद,भैरव और उनकी क्रान्तिकारी बहनें फूलो और झानो संथाल के दिलों में आज भी जिन्दा हैं. सिदो, कान्हो, चांद और भैरव के नेतृत्व में संथालियों का विद्रोह जीत में बदल नहीं पाया, लेकिन अंग्रेजी हुकूमत की जड़ों को हिला कर रख दिया और आने वाले वर्षों में आजादी के दीवानों को प्रेरित करता रहा.
Tags: Home Minister Amit Shah, Jharkhand BJP, Jharkhand news, Jharkhand Politics, Ranchi news, Sahibganj
FIRST PUBLISHED : September 20, 2024, 15:27 IST