कुंदन कुमार/ गया: धान खरीफ सीजन की प्रमुख नकदी फसल तो है ही, साथ ही किसानों को इससे अच्छी आमदनी भी होती है. धान की फसल से अच्छा उत्पादन लेने के लिये जरूरी है कि समय रहते सारे प्रबंधन कार्य किये जाए, जिसमें खरपतवार प्रबंधन करना भी शामिल है. बता दें कि खरपतवार ऐसे अनावश्यक पौधे होते हैं, जो धान की फसल में अपने आप उग जाते हैं. ये पौधे धान की फसल से पोषण सोखकर बड़े होते हैं. ये धान के पौधों के विकास को रोकते ही हैं, साथ ही कीट और बीमारियों को भी न्यौता देते हैं.
इन दिनों गया जिले में धान के फसल में धान के पता जैसा ही एक घास देखा जा रहा है जो धान के फसल के लिए काफी नुकसानदायक है. धान की फसल में मुख्यत: सभी प्रकार के खरपतवार जैसे घास, मोथा एवं चौड़ी पत्ती वाले घास पाये जाते है. इसलिए एक ही शाकनाशी का लगातार प्रयोग करते रहने से कुछ विशेष प्रकार के ही खरपतवारों की रोकथाम हो पाती है तथा दूसरे प्रकार के खरपतवारों की संख्या में लगातार वृद्धि होती रहती है तथा कुछ समय बाद यही दूसरी प्रकार के खरपतवार मुख्य खरपतवार के रूप में उभर आते है. ऐसी परिस्थितियों में विभिन्न प्रकार के शाकनाशियों का मिश्रण करके छिड़काव करने से खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है.
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इस संबंध में गया जिला पौधा संरक्षण सहायक निदेशक सुजीत नाथ मल्लिक बताते हैं कि धान के फसल लगे 20-25 दिन हो गये है और खेत में धान के पता सामान एक घास उग रहा है जो फसल के लिए हानिकारक है. ऐसे में उस खरपतवार का नियंत्रण करना अति आवश्यक है. इसके लिए काउंसिल नामक शाकनाशी का प्रयोग करने से इस खरपतवार पर नियंत्रण पाया जा सकता है. किसानो को इस दौरान इस बात का ध्यान रखना होगा कि यह शाकनाशी सिर्फ धान के पता जैसा दिखने वाली खरपतवार को नियंत्रण करेगी. धान के रोपाई के 20-25 दिन पर इसका छिड़काव करने से खरपतवार पर नियंत्रण पाया जा सकता है. अन्यथा 35-40 दिन होने पर इसे मैनुअल हाथ से निकालना होगा.
FIRST PUBLISHED : August 26, 2024, 22:06 IST