आर्थिक संकट से जूझ रही हिमाचल प्रदेश की सुक्खू सरकार अब टॉयलेट पर टैक्स वसूलने जा रही है. सीवरेज बिल के अलावा, अब वहां लोगों को घर में टॉयलट सीटों की संख्या के मुताबिक शुल्क देना होगा. मतलब, घर में जितने टॉयलेट होंगे, उतनी ही जेब ढीली करते हुए प्रति सीट 25 रुपये चुकाने होंगे. यहां ये भी ध्यान रखने वाली बात है कि ये कर राज्य सरकार ने लगाया है. जबकि इस तरह के टैक्स लगाने का काम स्थानीय निकायों मतलब नगर पालिका या फिर नगर निगम का है. ध्यान रखने वाली बात है कि सरकार का नारा है -‘जहां सोच वहां शौचालय.’ अब हिमाचल सरकार की ताजा पहल के बाद अगर आप इसे भद्दे तरीके से न कहने से गुरेज कर तमीज के साथ कहने की कोशिश की जाये तो कहा जा सकता है – सुक्खू सरकार ‘सोच’ पर टैक्स वसूल कर सरकार चलाने जा रही है.
सरकार की ओर से इसके लिए बकायदा नोटिफिकेशन जारी की गई है. हालांकि, नोटिफिकेशन में ये नहीं बताया गया है कि इससे खजाने में कितना रुपया जमा हो जाएगा. लेकिन सीएम सुखविंदर सुक्खू की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार को भरोसा है कि इससे खजाना भरेगा. तभी तो इसके लिए योजना बना कर नोटिफिकेशन किया गया है.
सरकार के नए टैक्स पर खूब चर्चा हुई और सरकार ने एक गोलमोल सा खंडन भी जारी किया.
बिजली सब्सिडी में चेंज कर चुकी है
हिमाचल सरकार अपनी माली हालत सुधारने के लिए बिजली पर दी जाने वाली सब्सिडी में पहले ही तब्दीली कर चुकी है और आगे भी बहुत कुछ करने जा रही है. पिछले दिनों सरकार अपने कर्मचारियों को तनख्वाह न दे पाने की वजह से चर्चा में थी. उस वक्त मुख्यमंत्री ने आगे बढ़ कर कहा भी था कि तनख्वाह खजाना खाली होने के कारण नहीं रोकी गई है. बल्कि इसके और कारण हैं.
वैसे तकरीबन सभी शहरों में सीवेज टैक्स के तौर स्थानीय निकाय कर वसूलते हैं, लेकिन उसका प्रयोग सीवेज मेंटिनेस में ही किया जाता है. राज्य सरकारें उससे अलग ही रहती है. स्थानीय निकायों को मजबूत बनाने के मकसद से 74वां संविधान संशोधन किया गया था. इसमें निकायों को मजबूत बनाने के लिए अलग अलग टैक्स लगाने के अधिकार भी दिए गए थे.
‘निकायों के अधिकारों का अतिक्रमण’
शिमला शहर के पूर्व महापौर और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता संजय चौहान कहते हैं -“सरकार ने ये टैक्स लगा कर निकायों के अधिकारों में दखलंदाजी की है.” उनका ये भी आरोप है कि इस तरह के टैक्स जन सुविधाओं के निजीकरण की खातिर लगाए जा रहे हैं. चौहान का कहना है-“शिमला में पानी का प्राइवेटाइजेशन किया जा चुका है. अब शौचालयों पर टैक्स लगा कर सीवेज व्यवस्था को सरकार निजी हाथों में सौंपना चाहती है.” उनके मुताबिक, नव-उदारवाद की सोच के तहत सरकार लोगों को निचोड़ना चाहती है.
बहरहाल ये हिमाचल में कांग्रेस सरकार आने के बाद ये स्थिति आती है, तो सवाल जरूर खड़े होते हैं. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने ही कभी शौचालयों को मंदिरों से भी महत्वपूर्ण बताया था. तो क्या अब कांग्रेस सरकार के लिए शौचालय उतने महत्वपूर्ण नहीं रहे? ये सवाल भी खड़ा होता है. हिमाचल प्रदेश में शिमला सहित बड़े शहर में सीवेज टैक्स के तौर पर पानी बिल का 30 फीसदी राशि वसूली जाती है. ऐसे में इस दूसरी टैक्स व्यवस्था की क्या जरुरत थी, ये थोड़ा कम समझ में आने वाली बात है.
बहरहाल, मामले पर फजीहत होती देख सुक्खू सरकार की ओर से एक विज्ञप्ति जारी करके पल्ला झाड़ने की कोशिश की गई लेकिन सरकार के इस खंडन के बाद भी स्थिति बहुत साफ नहीं हुई है कि सरकार शौचालयों से टैक्स नहीं वसूलेगी. सरकार ने प्रति सीट अलग से सीवरेज कनैक्शन लेने का खंडन किया है, जबकि मामला प्रति सीट शुल्क लेने का है.
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FIRST PUBLISHED : October 4, 2024, 13:14 IST