गोड्डा. कई क्षेत्रों में धान पकना शुरू हो चुका है, जिसके बाद अब कटाई का समय नजदीक आ रहा है. किसान धान कटाई की तैयारी में उत्साह के साथ लगे हैं. झारखंड के गोड्डा में खेतों में सुरक्षित स्थान पर धान की फसल को रखने के लिए आदिवासी क्षेत्रों में (खम्हार) खलिहान बनाया जाता है. इसमें फसल को सुरक्षित रखने के लिए एक विशेष प्रकार के पेड़ की डाल को पत्ते समेत एक कोने में गाड़ा जाता है.
मान्यता है कि भेलवा पेड़ की डाल को खलिहान में गाड़ने से लोगों की नजर नहीं लगती है और धान की फसल खलिहान में सुरक्षित रहती है. आदिवासी किसान श्यामलाल हांसदा ने लोकल 18 को बताया कि खलिहान बनाना इस समय की एक अनूठी परंपरा है, जो पीढ़ियों से चली आ रही है. इसे बनाने में भी एक विशेष प्रक्रिया होती है. पहले एक सुरक्षित स्थान चुना जाता है और वहां एक संरचना खड़ी की जाती है. खलिहान के अंदर धान की फसल को काट कर सुरक्षित रखा जाता है, ताकि वे बारिश या अन्य नुकसान से बची रहें.
जहरीले जीव दूर रहते हैं…
आगे बताया, उसी खलिहान की सुरक्षा के लिए भेलवा पेड़ की डाल को खम्हार के एक कोने में गाड़ दिया जाता है. संथाली भाषा में इस पेड़ को सिसोदड़ भी कहा जाता है, जो पहाड़ों में ही मिलता है. इसे तोड़कर लोग ग्रामीण क्षेत्रों में लाकर बेचते हैं तो एक डाल को 10 रुपये में बेचा जाता है. लोगों को मानना है कि इस डाल को खलिहान में लगाने से सांप-बिच्छू या अन्य जहरीले जीव आसपास नहीं आते हैं.
ईश्वर का आशीर्वाद है ये डाल
वहीं, किसान योगेंद्र महतो ने बताया, भेलवा पेड़ की डाल खलिहान में गाड़ने की परंपरा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है. आदिवासी मान्यताओं के अनुसार, यह न केवल फसल को बुरी नजर से बचाता है, बल्कि इसे एक प्रकार का आशीर्वाद भी माना जाता है. ग्रामीण मानते हैं कि इससे प्रकृति और ईश्वर की कृपा उनके साथ बनी रहती है, जिससे फसल अच्छी होती है और सुरक्षित रहती है.
उत्सव भी मनाया जाता है…
धान कटाई के बाद गांवों में फसल का उत्सव भी मनाया जाता है. इस दौरान घरों में खास व्यंजन बनाए जाते हैं और पूरा गांव मिलकर धान के नवधान्य का स्वागत करता है. यह फसल चक्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो न केवल आजीविका बल्कि पारंपरिक विरासत और सांस्कृतिक एकता को भी प्रकट करता है.
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FIRST PUBLISHED : November 11, 2024, 13:20 IST