धर्मशाला. पहाड़ों में मान्यता है कि इंद्रुनाग बारिश के देवता हैं. यहां बारिश उनकी इच्छा से होती है और उनकी इच्छा से ही रुकती है. यही कारण है कि जब बारिश नहीं होती, तब भी इनकी आराधना की जाती है और बारिश करवाने के लिए इंद्रुनाग की विधि-विधान से पूजा की जाती है.
इंद्रुनाग मंदिर का इतिहास
खनियारा स्थित भगवान श्री इंद्रुनाग मंदिर का इतिहास सदियों पुराना है. हालांकि इसके बारे में स्थानीय ग्रामीणों और मंदिर के पुजारियों के अनुसार, यहां एक वटवृक्ष के नीचे भगवान के पदचिह्न मिले थे. इसके बाद चंबा के एक राजा ने मंदिर में पूजा-अर्चना की. राजा की संतान नहीं थी, और भगवान श्री इंद्रुनाग ने उसे स्वप्न में दर्शन देकर संतान प्राप्ति का आशीर्वाद दिया. स्वप्न के अनुसार राजा ने उस स्थान पर जाकर पूजा की और अगले वर्ष अपने बेटे के साथ मंदिर का निर्माण कराया. इस क्षेत्र की भूमि को मंदिर के नाम कर दिया. इसके बाद से मंदिर में विशेष पूजा का दौर शुरू हुआ और जो भी श्रद्धालु अपनी मन्नत लेकर आता, उसकी हर मनोकामना पूरी की जाती.
मैच से पहले एचपीसीए भी यहां झुकाता है सिर
धर्मशाला से कुछ दूरी पर खनियारा में स्थित इंद्रुनाग देवता मंदिर में बारिश के देवता इंद्रुनाग विराजमान हैं. यहां मान्यता है कि बारिश से जुड़ी समस्याओं का समाधान होता है. यदि बारिश तेज हो रही है, तो यहां पूजा करने से वह थम जाती है. वहीं, यदि सूखा पड़ा हो, तो इंद्रुनाग खुश होकर झमाझम बारिश करते हैं. यही वजह है कि धर्मशाला में हर मैच के आयोजन से पहले हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (एचपीसीए) इंद्रुनाग मंदिर में पूजा-अर्चना करता है.
पूजा के बाद भी अगर देवता प्रसन्न न हों, तो होती है बारिश
मंदिर के पुजारी बताते हैं कि यह मंदिर मान्यता और आस्था का अटूट संगम है. लोग अपने खुशी के मौकों जैसे शादी-विवाह समारोह में बारिश की वजह से कोई विघ्न न पड़े, इसके लिए इंद्रुनाग की आराधना करते हैं. जब बारिश नहीं होती, तो किसान भी यहां बारिश के लिए पूजा करते हैं. वर्षों से लोगों को उनकी आराधना का फल मिलता आ रहा है, यही कारण है कि आज भी इस मंदिर की मान्यता बरकरार है। मंदिर का इतिहास भी बहुत प्राचीन है.
Tags: Himachal news, Kangra News, Local18
FIRST PUBLISHED : September 18, 2024, 13:22 IST