बोकारो: बरसात के दिनों में गाय, भैंस, बकरी आदि पशुओं का ध्यान ज्यादा रखना होता है. इस में जब इंसान इंफेक्शन से प्रभावित होते हैं तो जानवर भला कैसे अछूते रह सकते हैं. ऐसी ही एक बरसाती बीमारी है, जिस सर्रा (दिमागी बुखार) कहते हैं. यह दुधारू जानवरों के लिए काल से कम नहीं. इस बीमारी का वैज्ञानिक नाम ट्रिपैनोसोमियासिस है, जो मुख्य रूप से ट्राईपैनसो इवेनसाई नामक रक्त परजीवी के कारण होती है.
बीमारी परजीवी ट्राबनेस फ्लाई मक्खी के जरिए संक्रमित पशु से स्वस्थ पशु में फैलाती है. बोकारो के प्रखंड पशुपालन पदाधिकारी चास के पशु चिकित्सक डॉ. अशोक कुमार ने सर्रा रोग के रोकथाम और बचाव से जुड़ी जानकारी दी. बताया कि ये बीमारी आमतौर पर गौशाला में सफाई की कमी और मक्खियों के अधिक प्रकोप से फैलती है, जो पशुओं में मुख्य रूप से दो फेज मे देखी जाती है. पहला एक्यूट फेज, जो तीव्र चरण में पशुओं को अचानक प्रभावित करता है. दूसरा क्रॉनिक फेज, जिसमें पशु लंबे समय तक संक्रमित होते हैं.
सिर पटकते हैं पशु
एक्यूट फेज में सर्रा के परजीवी पशु के अंदर प्रवेश कर उसके ग्लूकोस को खा जाते हैं, जिससे जानवर के शरीर में ग्लूकोज की कमी हो जाती है. नर्वस सिस्टम प्रभावित होने के कारण पशु बार-बार दीवार पर सिर पटकता है, गोल-गोल घूमता है और आंखों में अंधापन तथा लंगड़ा पन होने लगता है, जिससे एक हफ्ते के अंदर पशु की मौत हो जाती है.
तब चिल्लाने लगते हैं जानवर
वहीं, क्रॉनिक फेज में पशुओं के अंदर रक्त परजीवी होने से पशुओं में रुक-रुक कर बुखार आना, बार-बार पेशाब करना, जानवर का चिल्लाना जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं. ऐसे में जानवरों का सही समय पर पशु चिकित्सक से इलाज करने पर पशुओं को बचाया जा सकता है और सर्रा की रोकथाम के लिए रोग निरोधक दवा जैसे एंटीसाइन पोसाल्ट और अन्य दवा पशु चिकित्सक की सलाह से ले सकते हैं.
रोकथाम के लिए करें ये काम
डॉ. अशोक ने बताया कि सर्रा बीमारी की वैक्सीन नहीं है, इसलिए पशुओं के बीमार होने पर पशु चिकित्सक से नियमित स्वास्थ्य जांच और रक्त जांच करवाना चाहिए, ताकि पशुओं का सही समय पर उपचार हो सके. वहीं, गौशाला में हमेशा कीटनाशक छिड़काव करना चाहिए, ताकि बरसात मे संक्रमित मक्खियां पशुओं से दूर रहें. संक्रमित पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग स्थान पर रखना चाहिए.
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FIRST PUBLISHED : August 5, 2024, 15:09 IST