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बरसात के मौसम में पपीते की फसल में प्रबंधन का यह है सही तरीका, जानें सुझाव

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दरभंगा : पपीता बहुत ही संवेदनशील पौधा है. पपीता में तरह तरह के विकार देखे जाते है. पपीते में विकारों का प्रबंधन करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है जिसमें उचित कल्चरल उपाय , मृदा प्रबंधन, रोग एवं कीट प्रबंधन का ससमय प्रबंधन अत्यावश्यक है. प्रोफेसर (डॉ) एसके सिंह विभागाध्यक्ष, पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी बताते हैं कि पपीते में विभिन्न विकारों के प्रबंधन हेतु निम्नलिखित उपाय करने की आवश्यकता है.

नाइट्रोजन की कमी
पपीता में नाइट्रोजन की कमी की वजह से पौधों के विकास में रुकावट और पुरानी पत्तियों के पीले पड़ने के लक्षण दिखाई देते है. नाइट्रोजन की आपूर्ति यूरिया, अमोनियम सल्फेट या जैविक उर्वरकों के माध्यम से की जा सकती है.अच्छी तरह से सड़ी हुई खाद या कम्पोस्ट का नियमित उपयोग भी नाइट्रोजन के स्तर को बनाए रखने में मदद मिलती है.

फास्फोरस की कमी
फास्फोरस की कमी की वजह से पपीता की पत्तियां बैंगनी रंग के साथ गहरे हरे रंग की हो जाती हैं. पौधे में धीमी वृद्धि और देरी से फल लगना भी दिखाई दे सकता है. रॉक फॉस्फेट या सुपरफॉस्फेट का उपयोग फास्फोरस की कमी को ठीक किया जा सकता है.

पोटैशियम की कमी
पोटैशियम की कमी से पत्तियों के किनारे और सिरे पीले पड़ जाते हैं, जिससे पत्तियां मुड़ जाती हैं और परिगलन हो जाता है. इस समस्या को ठीक करने के लिए म्यूरेट ऑफ पोटाश या सल्फेट ऑफ पोटाश का इस्तेमाल किया जा सकता है.

कैल्शियम की कमी
इससे ब्लॉसम एंड रॉट की समस्या होती है, जिसमें फलों पर पानी से लथपथ घाव हो जाते हैं. मिट्टी में नियमित रूप से चूना डालने या कैल्शियम नाइट्रेट लगाने से इस विकार को रोका जा सकता है. मैग्नीशियम की कमी लक्षणों में पुरानी पत्तियों पर इंटरवेनियल क्लोरोसिस शामिल है. मैग्नीशियम सल्फेट (एप्सम साल्ट) का इस्तेमाल इस कमी को ठीक कर सकता है. सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी पपीते में जिंक, आयरन और बोरॉन की कमी आम है.

नई पत्तियों का पीला पड़ना
लक्षणों में नई पत्तियों का पीला पड़ना (आयरन की कमी), छोटी पत्तियों का रुका हुआ विकास (जिंक की कमी) और खराब फल (बोरॉन की कमी) शामिल हैं. संबंधित सूक्ष्म पोषक तत्वों का पत्तियों पर छिड़काव या मिट्टी में इस्तेमाल इन समस्याओं को दूर कर सकता है.

पपीता में होने वाले पानी से संबंधित विकार
पपीते के पौधे जलभराव और सूखे दोनों के प्रति संवेदनशील होते हैं. जलभराव से अधिक पानी से जड़ सड़ सकती है, जिससे पौधे मुरझा सकते हैं और अंततः मर सकते हैं. पपीता के खेत में पानी यदि 24 घंटे से ज्यादा लग गया तो पपीता के पौधों को बचाना असंभव है. जलभराव को रोकने के लिए खेत में उचित जल निकासी सुनिश्चित करें. भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में उभरी हुई क्यारियां या लकीरें कारगर हो सकती हैं.

पपीते के विकारों के प्रभावी प्रबंधन के लिए अच्छे कल्चरल उपाय, समय पर हस्तक्षेप और फसल को प्रभावित करने वाले पर्यावरणीय और जैविक कारकों की समझ के संयोजन की आवश्यकता होती है. पपीते के पौधों की विशिष्ट आवश्यकताओं को संबोधित करके और विकारों के संकेतों पर तुरंत प्रतिक्रिया करके, उत्पादक स्वस्थ विकास और उच्च गुणवत्ता वाले फल उत्पादन सुनिश्चित कर सकते हैं.

Tags: Bihar News, Darbhanga news, Local18



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