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भगवान शंकर ने जिन्हें अपनी जांघों से पैदा किया, कौन हैं कुंभ में आए जंगम संत

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Mahakumbh Mela 2025: जंगम संतों के बारे में कहा जाता है कि ये भगवान शंकर के परम भक्त होते हैं और हमेशा उनका स्तुति गान करते रहते हैं. इनके दक्षिणा लेने का अंदाज भी दूसरों से अलग होता है.

महाकुंभ नगर. आस्था की संगम नगरी प्रयागराज पूरी तरह से महाकुंभ के रंग में सराबोर हो चुकी है. 13 जनवरी से शुरू होने जा रहे महाकुंभ के लिए भारत के साधु-संत अपने-अपने अखाड़ों के साथ भव्य पेशवाई निकालते हुए महाकुंभ नगर में प्रवेश कर चुके हैं. वहीं, प्रयागराज में संत समाज के साथ जंगम संतों की टोली भी घूमती नजर आ रही है. जंगम संतों की अनूठी कला और वेशभूषा मेले में लोगों का ध्यान आकर्षित कर रही है.

जंगम संत धर्म और अध्यात्म के महाकुंभ में शिव की महिमा का गुणगान कर रहे हैं. सिर पर मोर पंख और पगड़ी धारण किए इन घुमक्कड़ संतों का उद्गम भगवान शिव की जंघा से बताया जाता है. इन संतों से अखाड़ों के शिविर गुंजायमान हो रहे हैं. आमजन जंगम संतों के विषय में बहुत कम जानते हैं क्योंकि ये संत सिर्फ साधु-संतों के बीच भी रहते हैं और इनसे ही भिक्षा लेते हैं.

अलग-अलग टोलियों में बंटे जंगम समुदाय के इन शिव साधकों की पगड़ी और जनेऊ देवी-देवताओं के प्रतीक स्वरूप हैं. ये संत देवी पार्वती के जन्म से लेकर विवाह तक की कथा संगीतमय अंदाज में प्रस्तुत करते हैं. जंगम संतों की टोली के मुखिया सुनील जंगम ने आईएएनएस से खास बातचीत करते हुए अपने समाज की परंपरा और दैनिक जीवन के कार्यों के बारे में बात की. उन्होंने वृक्ष की तरह मोर पंख धारण को विष्णु भगवान की कलंगी बताया. जंगम संत इसके ठीक नीचे चांदी का मुकुट, आगे शेष नाग, माथे पर डिजाइन वाली बिंदी, दोनों कान में लटके कुंडल, गले में जनेऊ और हाथ में तल्ली लिए हुए थे, जो घंटी जैसी होती है.

उन्होंने बताया कि यह पांच स्वरूप पांच देव हैं. यानी यह पांच निशानिया हैं. उन्होंने कहा कि हम सिर्फ अपने सात अखाड़ों के साधु समाज में ही रहते हैं. बाहर की भिक्षा नहीं लेते हैं. हमारा दैनिक जीवन संतों के मध्य ही गुजरता है. फिलहाल संत कुंभ में आए हुए हैं तो हम भी कुंभ में आए हैं. फिलहाल दो माह तक हम प्रयागराज में ही रहेंगे.

सुनील जंगम ने आगे बताया कि हम दशनाम अखाड़े की गाथा गाते हैं और भगवान भोलेनाथ के गुणगान करते हैं. हम सभी सात अखाड़ों में जाकर वहां साधु संतों को शिव-पार्वती की कथा गाकर सुनाएंगे. जंगम संतों की संख्या के बारे में पूछे जाने पर सुनील जंगम ने बताया कि हमारी संख्या करीब 1500 के आसपास है. वहीं, जंगम संतों की दक्षिणा लेने की प्रक्रिया भी बड़ी अनूठी है. ये लोग दक्षिणा को हथेली में न लेकर तल्ली को उल्टा करके उसमें ही लेते हैं. दक्षिणा लेते समय भी गीत सुनाते हैं ताकि दानी पर शिव कृपा बनी रहे.

जंगम संतों के बारे में और जानकारी देते हुए श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा के महंत नागा बाबा ने आईएएनएस को बताया, “भगवान शंकर ने अपनी जांघ फाड़कर जंगम संतों को पैदा किया है. यह लोग शिव भक्त हैं, गीत गाते हैं और हमारे समाज का भी विवरण करते हैं. इसके बाद यह हमसे ही भिक्षा मांगते हैं. यह जनता के बीच भिक्षा के लिए नहीं जाते.”



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