रिपोर्ट- मनीष पुरी
भरतपुर: राजस्थान को किलो का गढ़ कहा जाता है. यहां एक से बढ़कर एक किले हुए हैं. इनमें से कई किलों की तो रहस्यमयी कहानियां भी हैं. इसी के साथ कई किलों की कुछ अलग हटकर भी कहानी है. ऐसा ही एक किला या दुर्ग भरतपुर में है. भरतपुर के उस अजेय दुर्ग को लोहागढ़ के नाम से भी जाना जाता है. यह किला भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है. यह किला अपनी अपराजेयता और अभेद्यता के लिए प्रसिद्ध है. इस किले को आज तक कोई भी शासक या सेना जीत नहीं पाई.
लोगागढ़ किले को 1733 में भरतपुर के संस्थापक महाराजा सूरजमल द्वारा बनवाया गया था. यह दुर्ग भारत के उन चुनिंदा किलों में से है जो आक्रमणों का सफलतापूर्वक सामना करता आया है और आज भी इतिहास के पन्नों में अपनी अमिट छाप छोड़े हुए है.
इतिहास के जानकारों के अनुसार लोहागढ़ किले की सबसे अनूठी विशेषता इसकी सुरक्षा प्रणाली है. इस किले की दीवारें और रक्षा संरचना मिट्टी के विशाल टीलों से घिरी हुई हैं जो इसे अपराजेय बनाती हैं. यह टीले न केवल दुर्ग की दीवारों को मजबूती प्रदान करते हैं बल्कि दुश्मनों के हमलों को भी विफल करने में सक्षम रहे हैं. दुश्मनों के तोप और बंदूकों से किए गए हमलों को यह मिट्टी के टीले आसानी से सोख लेते थे जिससे दुर्ग को कोई बड़ा नुकसान नहीं पहुंचता था. ये मिट्टी के टीले इस किले के लिए बिना सैनिक के एक सैनिक की तरह चौबीसों घंटे सुरक्षा का काम करते थे. इसके अलावा किले के चारों ओर गहरी खाई है जिसे सुजान गंगा कहा जाता है. यह किले को और भी मजबूत करती है.
ब्रिटिश सेना ने कई कई हमले
इतिहासकारो के अनुसार लोहागढ़ किले को कई शक्तिशाली शासकों और सेनाओं ने जीतने की कोशिश की लेकिन हर बार उन्हें असफलता ही हाथ लगी. मराठा, अफगान और ब्रिटिश सेनाएं भी इस किले को जीतने में विफल रहीं. विशेष रूप से ब्रिटिश सेना ने इस किले पर कई बार आक्रमण किए लेकिन वे भी इसे नहीं जीत पाए. इस कारण इस किले को लोहागढ़ के नाम से जाना जाता है. यह दुर्ग भारतीय किलों की अद्वितीय श्रेणी में आता है.
लोहागढ़ किला केवल भरतपुर के गौरव का प्रतीक नहीं है. यह भारतीय वास्तुकला और किलेबंदी की अद्भुत धरोहर है. इसके निर्माण में महाराजा सूरजमल की रणनीतिक कुशलता और तकनीकी ज्ञान का अद्वितीय मिश्रण देखने को मिलता है. किले की संरचना ऐसी थी कि यह किसी भी आक्रमण को न केवल झेलने में सक्षम था बल्कि आक्रमणकारियों को हर बार असफलता का सामना करना पड़ता था. इस किले ने भरतपुर को एक अजेय शक्ति के रूप में स्थापित किया और यही कारण है कि इसे लोहागढ़ अर्थात् लोहे का किला कहा जाता है.
यह दुर्ग न केवल एक किले के रूप में महत्वपूर्ण है बल्कि यह भरतपुर की शान गौरव और इतिहास का प्रतीक भी है. आज भी यह किला इतिहास प्रेमियों, पर्यटकों और शोधकर्ताओं के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. भारतीय इतिहास में इसकी अपराजेयता और अभेद्यता का विशेष स्थान है जो इसे सदियों तक यादगार बनाए रखेगा.
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FIRST PUBLISHED : October 13, 2024, 22:31 IST