गाय हमारी माता है…. बचपन सुनी सुनायी बात है. देश में बहुत सारे हिंदू तो यही सोचते और मानते भी हैं. बच्चे भले इसका मजाक बनाने के लिए, इसमें रोचक तुकबंदी जोड़ कर गाते फिरते हैं. बच्चों की तुकबंदी को उलट कर कहा जाय तो हो जाएगा- गाय हमरी माता है, हमको सब कुछ आता है…. बहरहाल, महाराष्ट्र सरकार ने देसी गाय को राज्यमाता -गौमाता मानने का फरमान जारी किया है. इसमें खास तौर से जिक्र किया गया है कि देसी गाय ही राज्यमाता होगी. अब बहुत सारे गोप्रेमियों को ये चिंता हो रही है कि तो फिर बाकी गौवें….
बाकी गायों के दूध भी नुकसानदेह नहीं
बाकियों के दूध से भी हमारे शरीर के पंचरसों का निर्माण और विकास होता है. हिंदी में कहें तो इनसे हमारा शरीर स्वस्थ और पुष्ट होता है. पंच रस भी जानना चाहते हैं तो जान लें – रक्त, रस, मांस, मज्जा और वीर्य. इनके संतुलन से शरीर स्वस्थ रहता है. माना जाता है कि दूध में इन सभी को पुष्ट करने की ताकत है. ये दूध जर्सी गाय भी देती है और होल्स्टीन फ्रिजियन भी. अगर कोई गौशालाओं का मुआयना करे तो सबसे ज्यादा यही दो गायें मिलेंगी. इसकी वजह ये है कि इनके पास दूध बहुत अधिक होता है. जाहिर है अगर गाय दूध ज्यादा देगी तो फायदा भी ज्यादा होगा. तो फिर सरकार ने इन्हें माता क्यों नहीं माना समझ में नहीं आता.
राज्यमाता के सिंहासन पर कितनी गायें
खैर देसी को ही माता मान लिया तो उसी में संतोष है. लेकिन सरकारी आदेश में ये नहीं बताया गया है कि कौन सी देसी गाय राज्यमाता के सिंहासन पर बिठाई गई है. हां, भारत में बहुत सारी देसी गाएं होती हैं. महाराष्ट्र की ही बात करें तो राज्य में कई गाएं हैं, जिन्हें देसी माना जाता है. कर्नाटक के सीमावर्ती इलाके में कृष्णा वैली गाय होती हैं. ये नस्ल दूध भी अधिक देती है. हालांकि राज्य में पाई जाने वाली देवानी गायें और अधिक दूध देने के लिए जानी जाती है. इनके अलावा अमृतमहल, वेचुर और खिलारी गायें भी ठीक ठाक दूध देने वाली मानी जाती है. ये वो गाएं हैं जिन्हें सरकारी महकमे भी महाराष्ट्र में देसी मानती हैं.
इनके अलावा देश के दूसरे हिस्सों में पाई जाने वाली गायों को कैसे देसी मानने से इनकार किया जा सकता है. गुजरात की गीर, हरियाणा-पंजाब की हरियाणा गायें तो निश्चित तौर पर देसी ही हैं. गीर के तो दर्शन और स्पर्श से देवताओं का आशिर्वाद मिल जाता है. क्योंकि माना जाता है कि इनके पूरे शरीर में अलग अलग देवताओं का बास होता है.
सवाल सिंधी-साहिवाल का
हां, थोड़ी दिक्कत सिंधी और साहिवाल को लेकर हो सकती है. सिंध और साहिवाल अब पाकिस्तान में चले गए हैं. पहले भारत में थे. लिहाजा अब तो कम से कम महाराष्ट्र के सत्ताधारी दल के हिसाब से ये विलायती ही हो गई है. ये वो गायें है जो अधिक दूध देती है और उसमें वसा भी ठीक ठाक होता है. गाढ़ा दूध देने वाली गायें.
‘गंगातीरी’ जानते हैं
बहरहाल, सिंधी-साहिवाल को छोड़ देते हैं. बात देसी की चल रही है तो देसी पर रहते हैं. देश भर में अलग अलग नस्ल की गायों को देसी माना जाता है. मसलन हिंदी पट्टी की बात करें तो इस पूरे इलाके में देसी के तौर पर सबसे ज्यादा मान्यता गंगातीरी की है.देसी होती है. ये बहुत सुंदर और सीधी गाय होती है, लेकिन दूध इतना ही देती है कि शिवजी का अभिषेक किया जा सके. लोगों इन्हें माता तो मानते हैं लेकिन पालते खिलाते नहीं. यहां तक कि इनकी नस्ल को दूसरे नस्लों से क्रास करा कर तकरीबन इन्हें गुम ही कर दिया है. अब ये कहीं-कहीं ही देखने को मिल पाती हैं. ऐसे में सिंधी, साहिवाल और हरियाणा नस्ल को ही देसी मान कर पाला पोसा जाता है.
छोटी वाली गायें
छोटी वाली (बौनी ) गाये महंगी हैं और उन्हें खरीद पाना सबके बस की बात ही नहीं है लिहाजा उनकी बातें ही क्या करना. लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने देसी गायों को पालने वालों को पचास रुपये प्रतिदिन देने की भी घोषणा की है. दस-बीस रुपये कप चाय वाले इस दौर में पचास रुपये का क्या भूसा मिलेगा, कितनी चूनी और खली मिलेगी ये समझ से परे है. फिर भी सरकार ने फैसला कर ही लिया है तो रियाआ कर क्या सकती है, राज्यमाता के सिंहासन पर फिर से देसी गाय को बिठाने की मुनादी भर करना उसका अख्तियार है.
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FIRST PUBLISHED : October 1, 2024, 16:17 IST