Vinesh Phogat in Election Field: पेरिस ओलंपिक में देश की मशहूर पहलवान विनेश फोगाट पदक से चूक गई थीं. यह वाकया लोगों के जेहन में अभी भी ताजा है. फाइनल से पहले उनका वजन 100 ग्राम ज्यादा पाये जाने के बाद इस मामले पर देश में दो धड़े बन गए थे. उससे उबरने के बाद विनेश अब एक और दंगल के लिए तैयार हैं, जो है हरियाणा विधानसभा चुनाव. पेरिस ओलंपिक में भारत की सबसे पीड़ादायक कहानी के केंद्र में रही स्टार पहलवान विनेश जुलाना सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं.
विनेश का राजनीति में प्रवेश कोई अनोखा मामला नहीं है. भारत में लंबे समय से पहलवान और राजनीति एक दूसरे के पूरक रहे हैं. 2019 हरियाणा विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने प्रदेश के दो नामी पहलवानों पर दांव लगाया था. 2012 लंदन ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीतने वाले योगेश्वर दत्त ने बरोदा सीट से और कॉमनवेल्थ गेम्स की गोल्ड मेडलिस्ट बबीता फोगाट ने चरखी दादरी से अपनी किस्मत आजमायी थी, लेकिन दोनों राजनीति के अखाड़े में नौसिखिया साबित हुए थे और उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. योगेश्वर दत्त ने तो 2020 में उपचुनाव भी लड़ा, लेकिन वह अपनी किस्मत नहीं बदल सके.
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पहलवान पहली बार कब आए राजनीति में
अगर कुश्ती की लोकप्रियता की बात की जाए तो हरियाणा का नाम सबसे ऊपर आता है. ओलंपिक कुश्ती में भारत ने अभी तक आठ पदक जीते हैं, लेकिन इनमें से सात हरियाणा के पुरुष और महिला पहलवानों के नाम रहे हैं. हरियाणा के अलावा दूसरे राज्य से ओलंपिक पदक जीतने वाले एकमात्र पहलवान महाराष्ट्र के खाशाबा जाधव हैं. ओलंपिक या एशियाई खेलों में कम पदक जीतने के बावजूद महाराष्ट्र ऐसा राज्य है, जहां पहलवानों और राजनीति के बीच संबंध सबसे पुराना है. TOI की एक रिपोर्ट के अनुसार उनके अखबार में 1931 में ‘पहलवान लड़ेंगे नगर निगम चुनाव’ इस हेडिंग से एक खबर छपी थी. रिपोर्ट में कहा गया है, ‘लगभग आधा दर्जन पहलवानों ने चुनाव लड़ने के लिए नॉमिनेशन दाखिल किया है.’
महाराष्ट्र में कई पहलवान रहे नेता
महाराष्ट्र में पद्मसिंह पाटिल और सदाशिवराव मांडलिक जैसे कई पूर्व पहलवान-नेता लोकसभा के लिए चुने गए और राज्य में मंत्री भी बने. संभाजी पवार महाराष्ट्र के एक अन्य पहलवान-नेता थे. अगर ताजा बात करें तो 2024 लोकसभा चुनावों में भी विभिन्न राजनीतिक दलों ने कई पूर्व पहलवानों पर दांव लगाया. पूर्व पहलवान मुरलीधर मोहोल बीजेपी के टिकट पर पुणे से लड़े और उन्होंने जीत हासिल की. हालांकि दो बार प्रतिष्ठित महाराष्ट्र केसरी खिताब जीतने वाले शिवसेना (यूबीटी) के चंद्रहार पाटिल सांगली से हार गए. पहलवान संसद के उच्च सदन यानी राज्य सभा भी पहुंचे. 1962 एशियाई खेलों में गोल्ड मेडल जीतने वाले मारुति माने राज्य सभा के सदस्य बने थे. उन्हीं की तरह भारत के सर्वकालिक लोकप्रिय पहलवान और अभिनेता दारा सिंह को बीजेपी ने राज्यसभा सदस्य मनोनीत किया था.
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मुलायम और बृजभूषण भी लड़ते थे कुश्ती
राजनीति में जिन पहलवानों ने कदम रखा उनमें दो तरह के लोग है. पहले वो जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जाकर पदक जीते और भारत की शान बढ़ाई. दूसरे वो जो जिन्होंने अपने गांव और कस्बों में कुश्ती लड़ी, लेकिन उन्हें बड़ी कामयाबी राजनीति में मिली. यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह और भारतीय कुश्ती संघ के पूर्व प्रमुख बृजभूषण शरण सिंह इस दूसरी श्रेणी में आते हैं. ये दोनों युवावस्था में कुश्ती लड़ते थे. पत्रकार सुनीता ऐरन ने अपनी किताब ‘विंड्स ऑफ चेंज’ में लिखा है कि मुलायम सिंह का पसंदीदा दांव चरखा दांव था. मुलायम के राजनीतिक गुरु प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के नाथू सिंह थे. उन्होंने मुलायम को पहली बार दंगल में ही देखा था. सुनीता ऐरन लिखती हैं कि यहीं से मास्टर-पहलवान मुलायम के न केवल राजनीतिक सफर की शुरुआत हुई, बल्कि वह शीर्ष पर भी पहुंचे. विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया ने कथित यौन उत्पीड़न मामले में बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी. बृजभूषण शरण सिंह छह बार लोकसभा सदस्य रहे. वह एक बार समाजवादी पार्टी (SP) और पांच बार बीजेपी से जीते.
विनेश का फैसला हैरान करने वाला नहीं
पिछले महीने एक लंबे विदाई नोट की आखिरी लाइनों में विनेश ने लिखा था, “मैं भविष्यवाणी नहीं कर सकती कि भविष्य में मेरे साथ क्या होगा. लेकिन इस सफर में मुझे भी आगे क्या होगा इस बात का इंतजार है.” लेकिन पेरिस ओलंपिक से भावनात्मक वापसी के बाद राजनीति में उतरने का फैसला हैरान करने वाला नहीं था. कांग्रेस के साथ राजनीति में प्रवेश करने और लोगों की प्रतिक्रिया क्या रही इस पर विनेश ने स्वीकार किया कि उन्हें जो प्यार और समर्थन मिला है, उससे वे अभिभूत हैं. उन्होंने कहा, “खेल में मुझे जितना प्यार मिल रहा था, राजनीति में मुझे उससे कहीं अधिक मिल रहा है. यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात है.” विनेश ने कहा कि लोगों को उनकी यात्रा में अपने संघर्ष का प्रतिबिंब दिख रहा है, विशेष रूप से महिलाएं उनसे जुड़ रही हैं. विनेश ने कहा, “लोगों की मुझसे उम्मीदें बढ़ गई हैं इसलिए मेरी जिम्मेदारियां बढ़ गई हैं. जब मैं चुनाव प्रचार के दौरान कहीं जाती हूं तो मुझे देखकर लड़कियां बहुत खुश होती हैं. वे मुझ में अपनी परछाई देखती हैं. वे मुझे अपने बीच का ही एक सदस्य मानती हैं, जो उनकी समस्या का समाधान करने के लिए यहां आई है.”
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क्या जुलाना की बहू को मिलेगा जीत का आशीर्वाद
विनेश को जुलाना (जिला जींद) से चुनाव लड़ने के लिए चुने जाने पर गर्व की अनुभूति होती है. उनकी ससुराल बख्ता खेड़ा इसी चुनाव क्षेत्र में आती है, जो उनके पति सोमवीर राठी का गांव है. उनकी जीत सुनिश्चित करना जुलाना के लिए एक नैतिक कर्तव्य के रूप में देखी जा रही है. यह पगड़ी के सम्मान की बात है.” टीओआई की एक रिपोर्ट के अनुसार एक स्थानीय निवासी कहते हैं, “वो जुलाना की बहू है, यहां से चुनाव लड़ रही है. चरखी दादरी उसका घर है, वहां से भी चुनाव लड़ सकती थी. लेकिन उसने जुलाना को चुना.” जाट समुदाय में प्रतीकों का बहुत महत्वपूर्ण है. जुलाना के एक किसान कहते हैं, “देखिए कैसे उसने अपना सिर दुपट्टे से ढका हुआ था.” लेकिन एक स्थानीय महिला कहती हैं, “अब बहू है, तो नाता है, लेकिन वोट किसे देना है वो मतदान से पहले देखेंगे.” यानी सभी खुश नहीं हैं, लोगों की राय बंटी हुई है और मुकाबला उनके लिए कड़ा है. हरियाणा में पांच अक्टूबर को मतदान होना है. 2005 के बाद से कांग्रेस भले ही यहां नहीं जीत पाई हो, लेकिन इस बार बीजेपी के उम्मीदवार कैप्टन योगेश बैरागी का सामना किसी मामूली शख्सियत से नहीं, बल्कि स्टार पहलवान से है.
ये एक और लड़ाई है उनके लिए
लेकिन चुनाव से इतर ये विनेश के लिए उनकी जिंदगी की एक और लड़ाई है. यह बलाली की उस लड़की की लड़ाई है जो लंबे समय तक अपने ताऊ महावीर फोगाट के कड़े अनुशासन और अपनी चचेरी बहनों के स्टारडम के बीच दबी रही. पहले उसने देश की व्यवस्था को चुनौती दी और जंतर-मंतर पर तूफान खड़ा कर दिया. प्रदेश और देश की सरकारें उसके खिलाफ सक्रिय हो गईं. फिर आया अगस्त महीने का वो दिन जब वह अपनी जिंदगी के सबसे बड़े मुकाम के करीब थी. पेरिस ओलंपिक का जो फाइनल उसके लिए यादगार दिन हो सकता था वो बुरा ख्वाब बनकर रह गया. देश में आने के बाद भी उसके लिए कुछ आसान नहीं था. फोगाट बहनों ने तो उसके खिलाफ सोशल मीडिया पर मानों मोर्चा ही खोल दिया था. इन सब में विनेश की कुश्ती तो सचमुच खत्म हो गई, लेकिन यह एक अलग लड़ाई है. उन्हें पेरिस भी याद है, वह जंतर-मंतर भी नहीं भूली हैं. लेकिन क्या जुलाना के लोगों को भी लगता है कि विनेश की लड़ाई उनकी अपनी है? इसका पता तो कुछ दिनों बाद ही चलेगा.
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FIRST PUBLISHED : October 1, 2024, 12:00 IST