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10 साल का लंबा इंतजार हुआ खत्म, भस्म आरती के साथ दशहरा में शामिल हुए शमशीरी महादेव

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कुल्लू: अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा का उत्सव इस साल विशेष बन गया है, क्योंकि शमशीरी महादेव 10 साल बाद इस ऐतिहासिक पर्व में शामिल हुए हैं. आनी घाटी के प्रमुख देवता शमशीरी महादेव, जो अपने रथ में सवार होकर 104 किलोमीटर की पैदल यात्रा के बाद दशहरा में सम्मिलित होने पहुंचे, यहां के लोगों के लिए विशेष महत्व रखते हैं. इस महादेव की आरती और पूजा विधि उज्जैन के महाकाल के समान मानी जाती है, जहां भस्म से भगवान का श्रृंगार किया जाता है.

भस्म से होती है महादेव की आरती
शमशीरी महादेव का मंदिर आनी में स्थित है, जहां प्रतिदिन देवता की भस्म आरती की जाती है. यह परंपरा उज्जैन के महाकाल की भस्म आरती के समान है. स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, यहां भगवान शिव का अनूठा रूप माना जाता है, और उनकी भस्म आरती घाटी के लोगों के बीच विशेष श्रद्धा का केंद्र है. यह परंपरा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है, और इसे देखने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं.

10 साल बाद दशहरा उत्सव में हुए शामिल
शमशीरी महादेव 10 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद कुल्लू दशहरा में भाग लेने पहुंचे हैं. पुजारी घनश्याम के अनुसार, पिछले कुछ सालों से देवता के नए मंदिर का निर्माण चल रहा था, जिसके चलते वे दशहरा में शामिल नहीं हो पाए थे. मान्यता है कि जब तक मंदिर का काम पूरा नहीं हो जाता, देवता अपने क्षेत्र से बाहर नहीं जाते. इस बार मंदिर का निर्माण कार्य समाप्त होने के बाद, शमशीरी महादेव ने दशहरा में भाग लिया, जो कि इस वर्ष के उत्सव को और भी विशेष बना देता है.

देवता सुनते हैं लोगों की पीड़ा
शमशीरी महादेव को घाटी में ही नहीं, बल्कि आसपास के क्षेत्रों में भी दुखहरण देवता के रूप में पूजा जाता है. पुजारी घनश्याम के अनुसार, जब भी देवता किसी क्षेत्र में जाते हैं, वहां के लोगों की पीड़ा और समस्याओं को सुनते हैं और उनका समाधान करते हैं. यह माना जाता है कि जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से महादेव के सामने अपनी मनोकामना रखते हैं, उनकी हर इच्छा पूरी होती है. इस कारण शमशीरी महादेव की विशेष मान्यता पूरे क्षेत्र में है.

दक्षिणायन देवता: शमशीरी महादेव
शमशीरी महादेव को दक्षिणायन देवता भी कहा जाता है, क्योंकि उनका मंदिर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बना हुआ है. यह विशेषता उन्हें उज्जैन के महाकाल के समान बनाती है, जो स्वयं दक्षिणायन माने जाते हैं. पुजारी ने कहा कि शमशीरी महादेव को भी महाकाल का ही रूप माना जाता है, और इसी कारण उनकी पूजा भी भस्म से की जाती है. उनकी भस्म आरती न केवल धार्मिक, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण मानी जाती है.

दशहरा उत्सव में महादेव की उपस्थिति
शमशीरी महादेव की दशहरा में उपस्थिति ने इस वर्ष के कुल्लू दशहरे को और भी विशेष बना दिया है. 10 साल के लंबे इंतजार के बाद, इस बार महादेव अपने भक्तों के बीच पहुंचे और उनके दुखों का निवारण किया. देवता की इस यात्रा और दशहरा में भागीदारी ने स्थानीय लोगों में एक नई उमंग और आस्था को जगाया है.

Tags: Har Har Mahadev, Kullu News, Local18, Mahakal Mandir, Ujjain Mahakal



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