उदयपुर. मेवाड़ राजघराने की राजतिलक की परंपरा का आज करीब 40 वर्षों बाद फिर से निर्वाह किया गया, इसमें सलूंबर ठिकाने के जागीरदार ने अपने अंगूठे के खून से राजतिलक किया. नाथद्वारा के सांसद विश्वराज सिंह मेवाड़ को 77वें महाराणा की उपाधि दी गई. चित्तौड़ के फतह प्रकाश महल में राजपुरोहितों पंडितों ओर विभिन्न राजा महाराजा की उपस्थिति में यह उपाधि दी गई.
सलूंबर पूर्व राजपरिवार के पूर्व रावत देवव्रत सिंह अंगूठा चीरकर विश्वराज सिंह मेवाड़ का तिलक करेंगे. यह परंपरा 452 साल पुरानी बताई जाती है. फरवरी 1572 में सलूंबर के तत्कालीन रावत परिवार के मुखिया ने रक्त तिलक कर कुंवर प्रताप को मेवाड़ का महाराणा घोषित किया था. इतिहासकार और पूर्व राजघराने के नजदीकी डॉ. अजातशत्रु सिंह शिवरती ने बताया कि कुंवर प्रताप का राजतिलक गोगुंदा बावड़ी के पास किया गया था. उस समय परिस्थितियां विकट थी. जल्दबाजी में राजतिलक किया जाना था. चुंडा जी के वंशजों में वरिष्ठ रावत किसनदास ने राज्याभिषेक किया, तब पूजा की थाली नहीं थी. कुंकुम भी उपलब्ध नहीं हो पाया. तब रावत किसनदास ने अंगूठा चीर कर अपने खून से राजतिलक किया और प्रताप को मेवाड़ का महाराणा घोषित किया था. डॉ. अजात शत्रु का दावा है कि तब से यह परंपरा है. इसके अनुसार महाराणा का राज्याभिषेक सलूंबर रावत चुंडा के वंशज करते आए हैं.
एकलिंगजी, द्वारकाधीश और चारभुजा मंदिर की आशंका लेंगे
इसके तहत एकलिंगजी मंदिर से धूप की राख और पुष्प, कांकरोली के द्वारकाधीश और चारभुजा नाथ मंदिर, गढ़बोर से पुष्प (भगवान के आशीर्वाद स्वरूप) लाकर विश्वराज सिंह मेवाड़ को दिए. इन तीनों मंदिरों से आशंका लेने के भी कारण हैं. पहला- दावा है कि एकलिंगजी से आशका लेने के साथ विश्वराज सिंह मेवाड़ एकलिंग जी मंदिर के दीवान (व्यवस्थापक) का पद संभाल लेंगे. द्वारकाधीश की आशंका लेने का कारण वहां से विश्वराज सिंह की वैष्णव गुरु दीक्षा होना है. चारभुजा, गढ़बोर मेवाड़ में प्रमुख कृष्ण धाम है. इसलिए वहां से पुष्प लाने की परंपरा है. बता दें, पूर्व राजपरिवार सदस्य और पूर्व सांसद महेंद्र सिंह मेवाड़ का 10 नवंबर को देहांत हो गया था.
FIRST PUBLISHED : December 7, 2024, 16:09 IST