सिरोही : दीपावली पर्व पर मां लक्ष्मी के पूजन का विशेष महत्व माना जाता है. आज हम आपको सिरोही जिले के सबसे प्राचीन महालक्ष्मी मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो चार हाथियों के साथ यहां विराजमान है. 600 साल पुराने इस मंदिर में चार हाथियों की वजह से माता को गज लक्ष्मी माना जाता है. सिरोही की आर्थिक उन्नति की कामना के साथ इस मंदिर की नींव सिरोही शहर के छोटी ब्रह्मपुरी में वर्ष 1425 में रखी गई थी.
इस मंदिर की विशेषता है कि यहां सफेद मार्बल से बनी चार भुजाओं वाली मां लक्ष्मी की प्रतिमा विराजमान है. माता के दो हाथों में कमल और कमल पर हाथी सवार हैं. मंदिर में बैठी हुई मुद्रा में माताजी का आसन भी कमल के साथ दो हाथियों का है. देश में गज लक्ष्मी की ऐसी अनोखी प्रतिमा संभवतः पहली है. समुद्र मंथन से प्राप्त हुए 14 रत्न में से आठवें रत्न के रूप में देवी अष्टलक्ष्मी प्रकट हुई थी, जिसे महालक्ष्मी के नाम से जाना गया.
श्रीमाली ब्राह्मण समाज करता है मंदिर की देखरेख और पूजा
इस मंदिर की कई पीढियों से देखरेख और पूजा-अर्चना श्रीमाली ब्राह्मण समाज द्वारा की जाती है. मान्यता है कि दीपावली के दिन यहां मां लक्ष्मी से मनोकामना करने पर घर की दरिद्रता दूर हो जाती है और परिवार में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है. मंदिर में लाभ पंचमी तक 8 दिन होने वाली अष्टलक्ष्मी की विशेष पूजा भी आकर्षण का केंद्र रहती है.
108 कमल के फूल से मां का होता है श्रृंगार
दीपावली के दिन महालक्ष्मी मंदिर की विशेष सजावट के साथ प्रतिमा का 108 कमल के फूलों से श्रृंगार किया जाता है. इसके लिए अहमदाबाद से विशेष फूल मंगवाए जाते हैं. हर साल चैत्र नवरात्रि पर श्रीमाली ब्राह्मण समाज की ओर से शतचंडी महायज्ञ आयोजित किया जाता है. 150 वर्षों से यह परम्परा चली आ रही है. छोटी ब्रह्मपुरी के महेंद्र व्यास ने लोकल-18 को बताया कि यह महालक्ष्मी मंदिर सिरोही की स्थापना के समय हुआ था.
जब राजघराने से सिरोही के ब्राह्मणों ने मुलाकात कर यहां मां लक्ष्मी की स्थापना की प्रार्थना की थी. यह सिरोही के प्राचीन मंदिरों में से एक हैं. यहां दीपावली और धनतेरस पर मां का जन्मोत्सव और पाटोत्सव हर्षोल्लास के साथ श्रीमाली ब्राह्मण समाज के द्वारा मनाया जाता है. जब धन्वंतरि त्रयोदशी का पूजन किया जाता है, तो इसके बाद सिरोही के सभी व्यापारी और शहरवासी यहां आकर धोक लगाते हैं और महालक्ष्मी से व्यापार में उन्नति और मनवांछित फल की कामना करते हैं.
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FIRST PUBLISHED : October 31, 2024, 09:20 IST