मधुबनी. मधुबनी की रहने वाली महिला मीनाक्षी पेशे से एक शिक्षिका हैं. अपने पेशे की वजह से नहीं बल्कि इनको पैड वुमेन के नाम से जानते हैं. मीनाक्षी आसपास के जिलों में घूमकर सेनेट्री नेपकिंस बांटने का काम करती हैं. ग्रामीण परिवेश के महिलाओ, लड़कियों को जागरूक करती हैं और खुलकर महिलाओं की परेशानियों पर बात करती हैं, दूसरे को बताती और समझाती हैं. जगह-जगह मशीन लगाने का काम करती हैं ताकि कम पैसों में सेनेट्री नेपकिंस आसानी से मिले और हर महिला इसका इस्तेमाल करे.
क्या बताती है मीनाक्षी
लोकल 18 से बातचीत में मीनाक्षी बताती हैं कि ग्रामीण क्षेत्र में पीरियड्स के बारे में लोग बात नहीं करते हैं. मेरा मानना है कि बच्चियों को इसके बारे में पहले ही बता दिया जाए. जब उसे मासिक धर्म हो तो फ़िर किसी तरह की परेशानी या घबराहट ना हो और 100% नैपकिन का इस्तेमल करें. वह बताती हैं कि मैंने इसकी शुरुआत सबसे पहले मिडिल स्कूल से की, मिडिल स्कूल के बच्चियों को जाकर इसके बारे में बताया. पैड कैसे इस्तेमाल करते हैं. शुरुआत में अवहेलना हुई, स्कूल मे शिक्षक भी पहले बुरा-भला कहते थे. बार-बार समझाने से बच्चों को धीरे-धीरे समझ आना शुरू हो गया.
मशीन लगने से सस्ता हुआ पैड
मैं जब शुरुआत में लोगों को समझाने जाती थी या अभी भी जाती हूं तो मैं यह नहीं कहती कि मुझे यहां पैड के बारे में बताना है. मैं गांव की महिलाओं को एक साथ समूह में बैठने के लिए कहती हूं. जागरूकता फैलाने की बात करते-करते उसके बाद पीरियड और पैड के बारे में लोगों को समझाती थी. इसका उपयोग कैसे करना है? क्या करना है? कहां कम पैसे में मिलेंगे? इसके लिए मैंने यहां के डीएम और अन्य अधिकारियों से मिलकर उनसे सहयोग राशि लेकर मशीन लगाने की कोशिश की और यह लग गया. इससे यहां कम पैसे में पैड मिलेगा और मैं खुद भी कम पैसे में इसे सरकारी तौर पर खरीदती हूं और महिलाओं को बांटती हूं.
बेशर्म नारी का टैग
समाज ने मिनाक्षी को बेशर्म नारी का टैग दिया. डॉक्टर मिनाक्षी बताती हैं कि जब ग्रामीण इलाके की महिलाओं और उनके पति द्वारा मुझे बेशर्म नारी कह कर पुकारा जाने लगा. मैंने उनसे समूह में बैठने की विनती की और गलत बोलने पर भगा देने के लिए कहा. यही तरीका बहुतों को बताने में कारगर सिद्ध हुआ. पिछले 10 साल से अभियान शुरू हुआ और लगभाग हर जगह बहुत सारे लोगों ने गंदे कपड़े की जगह सेनेटरी नैपकिन का इस्तेमल करना शुरू किया है. मधुबनी के लगभग हर गर्ल स्कूल मे बच्चियां अब पैड उपयोग करती हैं.
मशीन के लिए मिली सहायता
मशीन लगवाने के लिए सबसे पहले एसबीआई (SBI) और नोवा ( NOVA) को पत्र लिखी और उनके द्वारा यह सहायता उपलब्ध करा दी गई. साथ ही यह भी सिखाया कि उपयोग कर ली गई खराब पैड को इधर-उधर कचरे में फेकने की बजाय मिट्टी के अंदर डालना चाहिए.
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FIRST PUBLISHED : November 24, 2024, 18:55 IST