रांची. आपदा को अवसर में कैसे बदल जाता है इसका जीता जागता उदाहरण आपको देखने को मिलेगा झारखंड की राजधानी रांची से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित केरम गांव में. यह गांव खूबसूरत पहाड़ों की तलहटी में बसा हुआ है. यहां पर पानी की किल्लत रहती थी. आज से 2 साल पहले यहां पर खेती करना एक चुनौती था. लेकिन यहां के किसानों ने मिलकर ऐसा आईडिया लगाया कि अब यहां सालों भर खेत लहलहाती है.
किसान गोपाल राम बताते हैं- “2 साल पहले तक हमें खेती करने में बड़ी मुश्किल आती थी. क्योंकि पानी की किल्लत रहती थी. ऐसे में पहाड़ से सालों भर दो-तीन झरने है जो बहता रहता है. तो हम लोगों ने सोचा क्यों ना यह जो झरने का पानी बेकार जा रहा है इसी को खेत तक पहुंचाने का कोई उपाय और जुगाड़ किया जाए.
झरने के पानी को पहुंचाया एक-एक खेत में
गोपाल बताते हैं, हमने झरने का जो नीचे पानी आता है उसके पास एक बड़ा सा टैंक बना दिया. अब सारा पानी इस टैंक में आता है. कई सारी टैंक बनी हुई है, जगह-जगह टैंक में पानी भरा रहता है और फिर इसी टैंक में चार-पांच पाइप डाला रहता है और हर खेत में पाइप से पानी जाता है. खेत के बगल में क्यारी बनाई गई है. इस क्यारी के जरिए खेत के बीचों-बीच और दूर दराज के खेत में भी पानी जा पाता है. इसके अलावा हमने खेत के बगल में एक सीमेंटेड पतली नाली भी बना कर रखी है. जिससे खेतों में पानी साल भर बहता रहता है. 24 घंटे और सातों दिन आपको इन नाली में पानी देखने को मिलेगा.
मनरेगा के जरिये बना है टैंक
अन्य ग्रामीण शुभांकर बताते हैं, पहले धान की ही फसल होती थी. वह भी एकदम सीमित. लेकिन अब धान के साथ-साथ हम बैगन, गाजर, मूली हर तरह की सब्जी की खेती कर पाते हैं. इससे हमारी आमदनी भी बहुत बढ़ी है. सालों भर खेत में आपको कोई ना कोई फसल देखने को मिलेगा. कोई खेत यहां खाली नहीं रहता, खेती करने में भी काफी सहूलियत हो गई है.
उन्होंने बताया, टैंक बनाने के लिए खासतौर पर मनरेगा के पैसे का इस्तेमाल किया गया है. यहां के मुखिया और ऑफिसर के साथ मिलकर और विचार करने के बाद हमारे इस आईडिया को धरातल पर उतारा गया. मनरेगा का मुख्य योगदान रहा है तभी यह सारे टैंक बन पाए हैं और आज हमारे जीवन आसान बना पाया है.
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FIRST PUBLISHED : December 6, 2024, 20:38 IST